गढ़वाली अस्मिता का जागता दीप: अरधेंदू बहुगुणा की गांव वापसी और पर्यावरण साधना
पौड़ी/श्रीनगर गढ़वाल। खिर्सू में 16 जून को गढ़वाली साहित्य के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना चुके अबोध बंधु बहुगुणा का नाम साहित्य प्रेमियों के लिए किसी परिचय का मोहताज नहीं है। सरकारी सेवा में रहते हुए उन्होंने गढ़वाली भाषा में कविता,नाटक और एकांकी जैसे विधाओं को समृद्ध किया। आज उन्हीं के बेटे अरधेंदू भूषण बहुगुणा अपने जीवन के एक नए अध्याय की शुरुआत कर गढ़वाली अस्मिता को धरातल पर जीवित रखने का प्रयास कर रहे हैं। दिल्ली जैसे महानगर की तेज़ रफ्तार जिंदगी को अलविदा कहकर अरधेंदू बहुगुणा ने अपने पुश्तैनी गांव झाला (ब्लॉक खिर्सू,जनपद पौड़ी गढ़वाल) में स्थायी रूप से बसने का निर्णय लिया है। हालांकि वे स्वयं लेखक नहीं हैं,लेकिन पिता की कही यह बात-उत्तराखंड स्वर्ग भूमि है-उनके जीवन का मूलमंत्र बन गई। हरियाली की ओर लौटता जीवन गांव में बसने के बाद अरधेंदू ने सिर्फ जमीन को नहीं जोता,बल्कि उम्मीदों को भी सींचा है। उन्होंने अपने खेतों में आम, देवदार और बांज जैसे पारंपरिक वृक्षों का रोपण किया है। पर्यावरण-संरक्षण को लेकर वे गंभीर हैं और स्थानीय पारिस्थितिकी को बनाए रखने के लिए लगातार प्रयासरत हैं। दिल्ली में रहते हुए वे रॉटविलर ब्रीड के लिए पुरस्कार प्राप्त कर चुके हैं,लेकिन पहाड़ में उन्होंने तिब्बतीन मस्टिफ और भोटिया नस्ल के कुत्तों को प्राथमिकता दी है। इन नस्लों की स्थानीय जलवायु और सुरक्षा संबंधी आवश्यकताओं में उपयुक्तता,उनके निर्णय की परिपक्वता को दर्शाती है। जमीन से जुड़ी सोच,नीति से नहीं,अरधेंदू बहुगुणा मानते हैं कि गांवों का विकास सिर्फ सरकारी योजनाओं से नहीं, बल्कि जमीन पर मेहनत से होता है। वे कहते हैं, हिमाचल जैसे राज्यों से सीख लेकर हमें स्थानीय उत्पादों और जैविक खेती को प्राथमिकता देनी चाहिए। जब लोग शहरों में 14-16 घंटे काम कर सकते हैं, तो गांवों में यह संभव क्यों नहीं। गांव में होमस्टे-पर्यटन के साथ बदलाव की पहल-हाल ही में अरधेंदू ने अपने गांव में एक छोटा लेकिन खूबसूरत होमस्टे प्रारंभ किया है। यह होमस्टे उन पर्यटकों के लिए खास है,जो भीड़-भाड़ से दूर प्रकृति की गोद में सुकून की तलाश करते हैं। अरधेंदू इसे एक होटल नहीं गांव में बदलाव का माध्यम मानते हैं। इस नव आरंभ के अवसर पर गांव में एक सादे लेकिन प्रभावी कार्यक्रम का आयोजन किया गया। शुभारंभ समारोह में भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष संपत सिंह रावत,स्वास्थ्य मंत्री के निजी सचिव दीपक ढौडियाल,सामाजिक कार्यकर्ता हेमंत सिंह नेगी,महेश सिंह और अन्य स्थानीय गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। सभी ने अरधेंदू के इस साहसिक निर्णय की सराहना की और इसे गढ़वाल में बदलाव की जीवंत मिसाल बताया। एक संदेश,जो दूर तक जाएगा,अरधेंदू बहुगुणा की यह पहल सिर्फ गांव वापसी की कहानी नहीं है,बल्कि यह एक संकल्प है। अपनी जड़ों से जुड़ने का,अपने परिवेश को संवारने का और गढ़वाली आत्मा को सहेजने का। उनके प्रयास आने वाले समय में उत्तराखंड के युवाओं को यह सोचने पर विवश करेंगे कि क्या सच में विकास सिर्फ शहरों में ही संभव है।