Sunday 09/ 11/ 2025 

Bharat Najariya
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गुरु पूर्णिमा पर विशेष-गुरु के चरणों में ज्ञान,मर्यादा और अमरत्व का आलोक

श्रीनगर गढ़वाल। सनातन संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी ऊंचा दर्जा प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा,जिसे व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है,हिंदू पंचांग के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। यह दिन गुरु की महिमा,उनके मार्गदर्शन और उनके द्वारा प्रदत्त जीवन-दर्शन को स्मरण करने का पावन अवसर होता है। गढ़खालेश्वर महादेव मंदिर के महन्त नरेश भारती ने इस पावन पर्व पर श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि गुरु का महत्व माता-पिता के समान है, बल्कि कई दृष्टियों से उनसे भी अधिक है। माता-पिता हमें जीवन देते हैं,परंतु गुरु हमें जीवन जीने की कला सिखाते हैं,जीवन का उद्देश्य समझाते हैं और मृत्यु के बाद भी अमरत्व की ओर ले जाते हैं। महंत भारती ने कहा कि सद्गुरु वही होते हैं जो अनुशासन,सदाचार और शुद्ध विचारों के साथ अपने शिष्य को आध्यात्मिक उन्नति की ओर अग्रसर करते हैं। उन्होंने भगवान राम और श्रीकृष्ण का उदाहरण देते हुए कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम हों या योगेश्वर श्रीकृष्ण,उन्होंने अपने जीवन के श्रेष्ठतम गुण गुरुओं से ही सीखे और इसीलिए वे युगपुरुष बन सके। गुरु पूर्णिमा केवल उत्सव नहीं,यह अनुशासन और आत्मबोध का पर्व है। यह दिन उस गुरु-शिष्य परंपरा की पुनरावृत्ति का स्मरण कराता है,जिसने भारत को न केवल ज्ञान की भूमि बनाया,बल्कि आत्मा की मुक्ति का पथ भी दिखाया। महंत नरेश भारती ने भावपूर्ण शब्दों में कहा-गुरु साक्षात ब्रह्मा,विष्णु और महेश के रूप होते हैं-गुरु ब्रह्मा,गुरु विष्णु,गुरु देवो महेश्वरा। गुरु साक्षात परम ब्रह्म,तस्मै श्री गुरवे नमः॥ गुरु की शरण ही वह साधना है जो मनुष्य को अपराध से आराधना तक की यात्रा कराती है। उन्होंने कहा कि आज राष्ट्र को यदि ज्ञानवान,प्रकाशवान और शक्तिवान बनाना है तो हमें उस चिरंतन गुरु-शिष्य परंपरा की ओर लौटना होगा जहां गुरु केवल पठन-पाठन का माध्यम नहीं,बल्कि चरित्र निर्माण के स्तंभ होते हैं। गुरु के बिना न सुख है,न शांति है,न ही मुक्ति की कोई कल्पना। आत्मा की ज्ञान-पिपासा को अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता-गुरु पूर्णिमा उस प्यास को जागृत करने का पवित्र क्षण है। गुरु न केवल मार्गदर्शक होते हैं,बल्कि व्यक्ति के चरित्र,विवेक और व्यक्तित्व को गढ़ने वाले सच्चे निर्माता होते हैं। महंत नरेश भारती का संदेश आज की पीढ़ी को चेतावनी देता है कि यदि जीवन को सार्थक बनाना है तो गुरु की महत्ता को समझो और उनकी शरण में आओ। गुरु पूर्णिमा एक परंपरा नहीं,चेतना है। यह पर्व उस अलौकिक यात्रा की शुरुआत है जहां शिष्य,अंधकार से प्रकाश की ओर,अज्ञान से ज्ञान की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर अग्रसर होता है। गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं-गुरुचरणों में वंदन के साथ जीवन में प्रकाश के पथ पर अग्रसर हों।