Sunday 16/ 11/ 2025 

Bharat Najariya
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होनहार बिरवान के होत चिकने पात-उलाना के कृष्णा पंवार ने रचा सफलता का इतिहास,आईआईटी दिल्ली में मिला प्रवेश

कीर्तिनगर/श्रीनगर गढ़वाल। होनहार बिरवान के होत चिकने पात यह कहावत आज एक बार फिर सच साबित हुई है उलाना ग्राम के होनहार छात्र कृष्णा पंवार के रूप में,जिसने सीमित संसाधनों और कठिन परिस्थितियों के बावजूद अपनी प्रतिभा,दृढ़ निश्चय और कठिन परिश्रम से देश के प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान आईआईटी दिल्ली में प्रवेश प्राप्त कर लिया है। कृष्णा पंवार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय प्राथमिक विद्यालय,उलाना से ग्रहण की,जहां से उन्होंने कक्षा 5 तक की पढ़ाई की। इसके उपरांत उन्होंने जवाहर नवोदय विद्यालय पौखाल से इंटरमीडिएट तक की शिक्षा प्राप्त की। नवोदय विद्यालय में अध्ययन के दौरान कृष्णा ने कक्षा 6 से 12 तक प्रत्येक वर्ष टॉप तीन में अपनी जगह सुनिश्चित की,जिससे उनकी प्रतिभा और मेहनत का अंदाजा लगाया जा सकता है। कृष्णा को जेईई एडवांस्ड परीक्षा में ऑल इंडिया रैंक 6000 प्राप्त हुई है,जबकि ईडब्ल्यूएस श्रेणी में उन्होंने 699 वीं रैंक हासिल कर क्षेत्र का नाम रोशन किया है। अब वे आईआईटी दिल्ली से सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करेंगे। कृष्णा एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता विक्रम सिंह पंवार कीर्तिनगर में एक होटल में कार्यरत हैं,वहीं माता अनीता देवी एक समर्पित आशा कार्यकत्री हैं। संसाधनों की सीमितता कभी कृष्णा के सपनों के आड़े नहीं आई,बल्कि उन्होंने हर चुनौती को एक अवसर की तरह लिया। प्राथमिक विद्यालय उलाना के प्रधानाध्यापक उत्तम सिंह राणा ने बताया कि जब कृष्णा कक्षा 5 में पढ़ते थे,तभी उनके चाचा को कीर्ति नगर के एक निजी विद्यालय में नौकरी मिली और परिवार के अन्य बच्चों का दाखिला वहां करा दिया गया। किंतु कृष्णा ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह अपनी कक्षा 5 की पढ़ाई उलाना स्कूल से ही पूरी करेंगे और इसके बाद नवोदय विद्यालय में प्रवेश लेंगे। उनका यह आत्मविश्वास और लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता उस उम्र में ही असाधारण थी। कृष्णा ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता और शिक्षकों को दिया है,जिनके मार्गदर्शन और समर्थन ने उन्हें यह ऊंचाई प्राप्त करने में सहायता की। कृष्णा पंवार की यह सफलता न केवल उनके परिवार और गांव के लिए गर्व की बात है, बल्कि यह उन सभी विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्रोत है जो सरकारी विद्यालयों से पढ़ाई कर बड़े सपने देखते हैं। यह कहानी इस बात का प्रमाण है कि प्रतिभा संसाधनों की मोहताज नहीं होती, बस आवश्यकता होती है एक लक्ष्य की और उसे पाने की अटूट लगन की।