Friday 18/ 07/ 2025 

Bharat Najariya
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गांव में जंगली जानवरों का आतंग


रमेश राम
चंपावत/टनकपुर । उत्तराखण्ड के पहाड़ों में हरे -भरे पेड़ो क्रमश: चीड़,देवदार,बाज़,भुराश,उतिश अकेसिया,काफल,बेडू, जामुन,मेहल सहतूत,पया आदि लहराते थे,जहा आज की तारीख में हरियाली का स्तर काफी गिरता हुआ नजर आ रहा हैं। जंगलों में सारे पुराने पेड़ अपनी क्षमता खोकर सुख चुके हैं। फलसरूप आलम यह हैं कि जहा एक ओर प्रकृति व पहाड़ों की सुंदरता समाप्त हो रही हैं। वही दूसरी ओर नंगे होते जा रहे पहाड़ों की वजह से हमारा पर्यावरण भी दिनोंदिन प्रदूषित होता जा रहा हैं। पुराने पानी के सारे स्रोत नौले धारे, गाड़-गधेरे, पोखर इत्यादि सब सूखते जा रहे हैं। जो कि एक चिंतनीय विषय है। जबकि कई क्षेत्रो में वन विभाग द्वारा बरसात में बाज,बुराश,उतीश,अकेसियां आदी के वृक्ष लगाकर वृक्षारोपण का कार्य किया जाता हैं। परंतु उसकी सही देख-रेख नही हो पाने की वजह से वन विभाग की यह योजना भी फ्लॉप होती नजर आ रही हैं। आज जंगलों में इस तरह पेड़–पौधों की कमी होने की वजह से जंगली जानवरों बंदर, सुअर,चीतल,लोमड़ी व बाग आदि को भी जंगलों में छुपने के लिए जगह नही मिल पा रही हैं । और उनके खाने हेतु जंगली फल किलमौङा, हिसालू, घिघांरू, चेरी का भी आज काफी अभाव हो चुका हैं। फालसरूप सभी जंगली जानवर गांवो की ओर को पलायन कर रहे हैं। झुंड बनाकर गांवो में बेखौफ गुम रहे हैं। तथा दिन तो क्या रात मे भी खेतो मे आकर कास्तकारो की फसल, सब्जी एवं फल इत्यादि को नष्ट कर जा रहे हैं।स्थिति भयावह तब हो रही हैं। जब बाग और तेंदुआ जैसे आदमखोर जंगली जानवर दिन-दिहाड़े गांवों की बस्तियों मे निडर होकर घूमते नजर आ रहे है। जिससे कि गांव वासियो मे काफ़ी भय का माहौल पैदा हो रहा हैं। जहा एक ओर बंदरों वह सुअरो के झुंडके झुंड खेतो में आकर छोटे–मोटे कास्तकारों की फसलों वह सब्जियों तथा फलों इत्यादि को बर्बाद कर भारी नुकसान पहुंचा रहे है। वही दूसरी ओर बाग,सुअर व तेंदुए जैसे आदमखोर जंगली जानवर रात में तो क्या दिन में भी गांवों मे विचरण कर रहे हैं। जिससे की लोगो का इक्का–दुक्का घर से बाहर निकलना खतरे की घंटी साबित हो रहा हैं। बकरी, गांयो के छोटे–छोटे बछड़े इत्यादि जैसे मवेशी तो दिन दहाड़े ही बाघों की चपेट में आकर उनके निवाले बन जा रहे हैं।हालाकि कई बार वन विभाग को भी छेत्र मे आदमखोर बाघ होने की सूचना दिये जाने पर संबंधित विभाग पिंजड़ा लगाकर भी बाघों को पकड़ा जाता हैं। परंतु फिर भी आज की तारीख मे इन आदमखोर बाघों की संख्या इतनी हो चुकी हैं जिन्हे पहाड़ों की दुर्गम छेत्रो मे बसे गांव से पिंजड़ा लगाकर लाना काफी असंभव हो रहा हैं यदि यही क्रम चलता रहा तो एक दिन गांव में जनमानस का रहना काफी दुभर हो जाएगा, तथा मजबूरन सभी को अपना घर गांवों को छोड़कर बाहर पलायन करना पड़ेगा। इसलिए आज सरकार को चाहिए कि वह ग्रामीण कास्तकारो को इस समस्या से निजात दिलाये जाने हेतु पुख्ता इंतजाम करते हुए इन सभी जंगली जानवरों बंदर, सुअर, लोमड़ी, लंगूर, बाघ, तेंदुआ तथा चीतल आदि को पकड़ने की उचित व्यवस्था कर उन्हे संबंधित चिड़याघरो मे भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित करें।