जलियांवाला बाग कांड का बदला जनरल डायर को मारकर उधम सिंह ने लिया और फांसी चढ़े

गदरपुर। रांझा के भागीं हीर लिखी साडी किस्मत विच जंजीर। यह पक्तियां गुनगुनाने वाले क्रांतिकारी शहीद उधम सिंह ने जलियांवाला बांग (अमृतसर) में 1919 की बैसाखी वाले दिन करीब 12 सौ लोगों की हत्या के बाद गोलियोें से भूनकर निर्दोष लोगों के नरसंहार का बदला लिया था। पंजाब के सुनाब कस्बे में 26 दिसम्बर 1899 को सरदार टहल सिंह के घर जन्में इस क्रांंतिकारी की मां का नाम नारयणी कौर था। महज चार वर्ष की आयु में ही मां के देहांत के बाद सात साल की उम्र में पिता भी चल बसे। ढाई साल बड़े भाई के साथ ऊधम सिंह का लालन-पालन अनाथ आश्रम में हुआ। बचपन में इस क्रांतिकारी का नाम शेर सिंह था। जो बाद में सिख मर्यादा में अमृतपान कर ऊधम सिंह कहलाये। 18 वर्ष की आयु में इनके बड़े भाई का निधन हो गया। 1907 में खालसा स्कूल से मैटिकुलेशन की परिक्षा पास कर ऊधम सिंह नौकरी की तलाश करने लगे । इसी बीच रोलैट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी के आहृवान पर सत्याग्रह की घोषणा हुई। मार्च 1919 में इस एक्ट के विरोध में पंजाब में भारी आक्रोश भड़क उठा। अमृतसर में डा. सैफीद्दीन किचलू व डा. सतपाल के भाषणों पर अंग्रेजों ने पाबंदी लगा दी और दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। इसके विरोध में जलियांवाला बाग में विशाल जनसभा आयोजित की गयी। सभा में ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने में जुट गये। सभा में बौखलाये ब्रितानी हुक्मरानों के आदेश पर अंग्रेज सैनिकों ने अंधाधुध गोलियां चलाकर वहां लाशें बिछा दी। एक गोली ऊधम सिंह के भी बाजू को चिरती हुई पार हो गयी। इस घटना ने ऊधम सिंह को झकझोर कर रख दिया। वह श्री दरबार साहिब अमृतसर गये और पवित्र सरोवर में स्नान कर इस नरसंहार का आदेश देने वाले जनरल डायर से बदला लेने और अंग्रेज सरकार की भारत से उखाड. फेंकने की प्रतिज्ञा ली। फिर वह स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़चढ़कर हिस्सेदारी करने लगे और उनको जेल हो गयी। रिहा होने के बाद वे कैलीफोनिया चले गये और गदर पार्टी के सदस्य बन गये। 13 मार्च 1940 को लंदन कैक्सटन हाॅल में अंग्रेज राजनीतिज्ञों का सम्मेलन था। प्रतिशोध की आग में चल रहे ऊधम सिंह सम्मेलन में पहुंचे। शाम करीब चार बजे सभा समाप्त होने पर लोग उठने लगे तो ऊधम सिंह मंच की तरफ लपके और पांच सैकेंड के भीतर छह गोलियां जनरल डायर के सीने में उतार कर उसे मौत के घाट उतार दिया। अंततः ऊधम सिंह गिरफ्तार कर लिये गये। बाद में ज्यूरी के सामने पेशी के दौरान भी ऊधम सिंह ने ब्रिटिश साम्राज्य की पुरजोर मुखालफत की। सजा सुनने के बाद 31 जुलाई को ऊधम सिंह ने हंसते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया और स्वर्ण अक्षरों में अपना नाम शहीदों की सूची में रख दिया।