उत्तराखंड की स्वाद और संस्कृति का संगमरू मसूरी में प्राची रतूड़ी मिश्रा की पुस्तक उत्तराखंड कुज़ीन पर हुई चर्चा
मसूरी हेरिटेज सेंटर के तत्वाधान में इनटेक ( भारतीय राष्ट्रीय कला और सांस्कृतिक विरासत ट्रस्ट) के सहयोग से आयोजित लंढौर लेक्चर सीरीज के 85वें संस्करण में मसूरी की लेखिका और शोधकर्ता प्राची रतूड़ी मिश्रा की पुस्तक ‘उत्तराखंड कुज़ीन फूड एंड फोकटेल्स फ्रॉम द हिल्स’ पर सारगर्भित चर्चा हुई। कार्यक्रम में मसूरी और आसपास के क्षेत्र के साहित्यप्रेमियों, इतिहासकारों, शिक्षाविदों और सांस्कृतिक शोधकर्ताओं ने भाग लिया। इस पुस्तक में उत्तराखंड की पारंपरिक पाक शैली, विलुप्त होती पहाड़ी रेसिपीज़ और उनसे जुड़ी लोककथाओं को रोचक शैली में प्रस्तुत किया गया है। मिश्रा ने वर्षों के शोध और स्थानीय अनुभवों के आधार पर पहाड़ के स्वाद को शब्दों में पिरोया है। विमर्श के दौरान उत्तराखंड के विशिष्ट पारंपरिक व्यंजन जैसे झंगोरे की खीर, भट्ट की चुड़क़ानी, गहत के पराठे, आलू के गुटके, मंडुवे की रोटी, और सिसौंण की सब्जी विशेष चर्चा का केंद्र रहे। प्राची रतूडी ने चौरी, बुरांश, काफल, और गिंदी जैसे पहाड़ी फलों व औषधीय पेड़ों के महत्व पर भी प्रकाश डाला गया। मंडुवा (रागी), झंगोरा (बार्नयार्ड मिलेट), भट्ट (काले सोयाबीन), और गहत (हॉर्स ग्राम) जैसे स्थानीय उत्पादों को ना सिर्फ पोषण का भंडार बताया गया, बल्कि उन्हें भविष्य के ‘सुपरफूड्स’ के रूप में भी प्रस्तुत किया गया। उन्होने इस बात पर भी जोर दिया कि उत्तराखंड की पाक परंपराएं सिर्फ स्वाद तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनमें मौसम, पर्व, स्वास्थ्य और लोक आस्था की गहराई से झलक मिलती है। पुस्तक की एक विशेषता यह भी रही कि इसमें केवल व्यंजनों का वर्णन नहीं है, बल्कि उनके साथ जुड़ी लोककथाएं भी शामिल हैं। इन कहानियों के माध्यम से यह स्पष्ट होता है कि कैसे भोजन उत्तराखंड के सामाजिक ताने-बाने का हिस्सा रहा है चाहे वह त्यौहारों के अवसर हों, धार्मिक अनुष्ठान हों या फिर ग्रामीण जीवन की दैनिक दिनचर्या। वक्ताओं ने कहा कि यह पुस्तक आने वाली पीढ़ियों के लिए एक महत्वपूर्ण दस्तावेज के रूप में कार्य करेगी। ऐसे समय में जब पारंपरिक खानपान और रीति-रिवाज लुप्त हो रहे हैं, ‘उत्तराखंड कुज़ीन फूड एंड फोकटेल्स फ्रॉम द हिल्स’ जैसी पुस्तकें सांस्कृतिक पुनर्जागरण में सहायक हो सकती हैं।