Monday 17/ 11/ 2025 

Bharat Najariya
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मसूरी में पुष्प खेती और औषधीय पौधों पर प्रशिक्षण कार्यक्रम, किसानों को आजीविका बढ़ाने की दिशा में किया प्रेरित



मसूरी में हिमसुरभि एरोमा म्यूज़ियम द्वारा सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ के सहयोग से संयुक्त प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम सीएसआईआर फ्लोरीकल्चर मिशन और सीएसआईआर फाइटो फार्मास्यूटिकल मिशन के अंतर्गत आयोजित हुआ, जिसका मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों को वैज्ञानिक तरीकों से पुष्प और औषधीय पौधों की खेती हेतु प्रशिक्षित करना और आजीविका के नए अवसर प्रदान करना था। कार्यक्रम में कई महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक सत्र आयोजित किए गए जिसमें किसानों की आय दोगुनी करने के लिए पुष्प खेती के लिये प्रेरित किया गया। लखनऊ से डॉ. श्रीवास्तव, सीएसआईआर-सीमैप ने गुलाब, गेंदा, रजनीगंधा और चमेली की खेती पर एक बेहद उपयोगी और प्रभावशाली व्याख्यान दिया। उन्होंने इन फूलों की व्यावसायिक संभावना और उत्तराखंड में इनकी सफल खेती से किसानों की आय को दोगुना करने के तरीकों पर विस्तार से जानकारी दी। दूसरा सत्र कुर्कुमा अमाडा (मैंगो जिंजर) पर जागरूकता एवं प्रदर्शन सत्र सीएसआईआर फाइटोफार्मास्यूटिकल मिशन के अंतर्गत आयोजित हुआ, जिसमें कुर्कुमा अमाडा की खेती, उपयोगिता और इसकी बाज़ार में मांग पर जानकारी दी गई। यह पौधा औषधीय गुणों के कारण वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हो रहा है। तिसरा सत्र फूलों द्वारा चक्र हीलिंग पर ऑनलाइन सत्र आयोजित किया गया जिसमें हैदराबाद सेविशारद निधि शर्मा ने ऑनलाइन जुड़कर फूलों के माध्यम से चक्र संतुलन और मानसिक शांति प्राप्त करने के विषय पर रोचक प्रस्तुति दी। चौथा सत्र ताज़े फूलों के संरक्षण पर लाइव डेमो किया गया जिसमें महाराष्ट्र से कल्पना, कोल्हापुर, ने ताजे फूलों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की विधियों पर लाइव प्रदर्शन दिया, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में पुष्प उत्पादों से जुड़े नए व्यवसाय की संभावनाएँ खुल सकती हैं। कार्यक्रम में मसूरी और आसपास के क्षेत्रों से बड़ी संख्या में प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें अरुण (थत्यूड), पिंकी (देहरादून), शशि (कुलरी), टाटा सिंह (स्टूडेंट काउंसलर, देहरादून), आयुष (चमोली) और कई अन्य युवा, महिला उद्यमी और किसान शामिल थे। इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का मूल उद्देश्य पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में स्थायी आजीविका के साधनों को बढ़ावा देना और गांवों को आत्मनिर्भर एवं जीवंत ग्राम के रूप में विकसित करना है। साथ ही, किसानों की आय को दोगुना करने की दिशा में यह एक ठोस कदम साबित हुआ। कार्यक्रम के समापन पर प्रतिभागियों ने इस तरह के प्रशिक्षण से प्राप्त ज्ञान को अपने क्षेत्रों में लागू करने और उत्तराखंड को हरित व आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता जताई।